दीवाली के अवसर पर राग दीपक में सितार, शुजात खां से सुनिये।
राग दीपक के बारे में ये कहानी प्रसिद्ध है कि इसे जब तानसेन ने गाया था, और उनके शरीर में आग जितनी गर्मी पैदा हो गई थी तब उनकी बेटी ने मल्हार गा कर उन्हें शांत किया था। राग दीपक का शुद्ध रूप अब नहीं देखने को मिलता है। कहते हैं कि अट्ठारह शताब्दि में ही ये राग लुप्त होने लगा था, क्योंकि इसके गाने से गायक के शरीर में अत्यधिक गर्मी पैदा होने लगती थी।
थोड़ी जानकारी राग दीपक के बारे में-
राग दीपक को कभी ठाठ पूर्वी, तो कभी ठाठ बिलावल तो कभी ठाठ खमाज के अंतर्गत गाया बजाया जाता है।
जाति: षाडव संपूर्ण
वादि: सा
संवादी: प
गायन समय: रात्रि का दूसरा प्रहर
आरोह- सा ग मे प, ध॒ नी सां।
अवरोह- सां ध॒ प, मे ग रे॒ सा।
आइये सुनते हैं इस कठिन राग को शुजात खां से, पूर्वी ठाठ का राग दीपक। इसमें राग श्री की भी छाया है और शुद्ध मध्यम का प्रयोग। (सितार वादन के साथ, कुछ गायन भी...)
सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
आभार: http://www.sawf.org/
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Monday, October 27, 2008
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