आइये इस सुंदर भजन को सुनने से पहले राग भैरवी के बारे में जानें-
रे ग ध नि कोमल राखत, मानत मध्यम वादी।
प्रात: समय जाति संपूर्ण, सोहत सा संवादी॥
इस राग की उत्पत्ति ठाठ भैरवी से मानी गई है। इसमें रे, ग, ध, और नि, कोमल लगते हैं और म को वादी तथा सा को संवादी स्वर माना गया है। गायन समय प्रात:काल है।
मतभेद- इस राग में कुछ संगीतज्ञ प सा किंतु अधिकांश म-सा वादी संवादी मानते हैं।
विशेषता-
१.ये एक अत्यंत मधुर राग है और इस कारण इसे सिर्फ़ प्रात: समय ही नहीं बल्कि हर समय गाते बजाते हैं। सभी समारोहों का समापन इसी राग से करने की प्रथा सी बन गयी है।
२.आजकल इस राग में बारहों स्वर प्रयोग किये जाने लगे हैं, भले ही इसके मूल रूप में शुद्ध रे, ग, ध, नि लगाना निषेध माना गया है।
३.इससे मिलता जुलता राग है- बिलासखानी तोड़ी।
आरोह- सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ सां।
अवरोह- सां नि॒ ध॒ प म ग॒ रे॒ सा।
पकड़- म, ग॒ रे॒ ग॒, सा रे॒ सा, ध़॒ नि़॒ सा। (़ = मन्द्र स्वर)
भवानी दयानी
महा वाकवानी
सुर-नर-मुनि जनमानी
सकल बुधज्ञानी
जगजननी जगदानी
महिषासुर मर्दिनी
ज्वालामुखी चंडी
अमर पददानी
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(आभार: परवीन सुल्ताना का ये भजन मुझे ईस्निप्स.काम पर मिला।)
4 comments:
navratri aur nav varsh ki shubhkamnayen.
aur sundar bhajan sunane hetu dhnywaad.
'Bhagawati Bhairavi - Bhagawati Bhairavi:' - I can never tire of this timeless melody! Do post some more compositions - I'm sure you've a 'khazaanaa'... And do write about Bilaskhani, as well - Looking forward to it!
Check this out - something on Todi...
http://music-fundaaz.blogspot.com/2009/03/sweet-melancholy.html
इस blog पर आकर अच्छा लगा.. इसी बहाने संगीत का कुछ मूल ज्ञान प्राप्त हो जाएगा :) good luck :)
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