Tuesday, March 15, 2016

राग मालकौंस

राग मालकौंस ठाठ भैरवी से उत्पन्न माना जाता है.
इस राग की जाति- औडव-औडव है. रे व प वर्ज्य स्वर हैं,
गायन समय रात का तीसरा प्रहर है.
वादी - म, संवादी- सा
इस राग में ग, ध, व नि कोमल लगते हैं


आरोह- सा ग॒ म ध॒ नि॒ सां 
अवरोह- सां नि॒  म ग॒  सा 
पकड़- ध़॒ नि़॒॒॒ सा म, ग़॒ म ग़॒ सा  

विशेषता- इस राग का चलन तीनों सप्तक में एक ही जैसा होता है
इस राग में अगर नि को शुद्ध कर दिया जाए तो यह राग चन्द्रकोश हो जाएगा 
इस राग के न्यास के स्वर हैं - सा ग॒ म 
इस राग में मींड, गमक और कण का खूब प्रयोग किया जाता है 

कुछ विशेष स्वर संगतियाँ - 

म ग॒ म ग॒ सा 

ग॒ म ध़॒ नि़॒ सां

सां नि॒ ध॒ नि॒ ध॒ म 

राग मालकौंस या मालकोश में सुनिये रशीद खां द्वारा गाई यह प्रसिद्ध बन्दिश  (आज मोरे घर आये ...)


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