Wednesday, January 28, 2009

बसंत

( picture location: Buchart Garden, Victoria, Canada)
बसंत द्वार पर खड़ा है। ऐसे में सुनते हैं ये मधुर राग पं. राजन साजन मिश्र की आवाज़ में।

संक्षिप्त परिचय राग बसंत-

"दो मध्यम कोमल ऋषभ चढ़त न पंचम कीन्ह।
स-म वादी संवादी ते, यह बसंत कह दीन्ह॥

आरोह- सा ग, म॑ ध॒ रें॒ सां, नि सां।
अवरोह- रें॒ नि ध॒ प, म॑ ग म॑ ऽ ग, म॑ ध॒ ग म॑ ग, रे॒ सा।
पकड़- म॑ ध॒ रें॒ सां, नि ध॒ प, म॑ ग म॑ ऽ ग।

थाट- पूर्वी (प्रचलित)

इस राग के बारे में कुछ मतभेद भी हैं। पहले मतानुसार इस राग में केवल तीव्र मध्यम का प्रयोग होना चाहिये, मगर दूसरे मतानुसार दोनो म का प्रयोग होना चाहिये जो कि आज प्रचलन में है।

विशेषता- उत्तरांग प्रधान राग होने की वजह से इसमें तार सप्तक का सा ख़ूब चमकता है। शुद्ध म का प्रयोग केवल आरोह में एक विशेष तरह से होता है- सा म, म ग, म॑ ध॒ सां।
गायन समय
- रात्रि का अंतिम प्रहर (मगर बसंत ऋतु में इसे हर समय गाया बजाया जा सकता है।

इसे परज राग से बचाने के लिये आरोह में नि का लंघन करते हैं-

सा ग म॑ ध॒ सां
या
सा ग म॑ ध॒ रें॒ सां

विशेष स्वर संगतियाँ-

१) प म॑ ग, म॑ ऽ ग
२) म॑ ध॒ रें सां
३) सा म ऽ म ग, म॑ ध॒ रें॒ सां


6 comments:

महेन said...

ये तो पता नहीं इस विकासशील बुद्धि में सीखने की कितनी कुव्वत बची है मगर संगीत का आनंद तो उठाता है. अब वसंत मुझे भी नज़र आ रहा है.

सतपाल ख़याल said...

sangeet ki is seva ke liye hum sab aapke riNee hain.

दिलीप कवठेकर said...

वाह वाह!!!

अद्भुत संगीत रचना!!!!

Milind said...

Wha, well done once again Manoshi. Always look forward to your posts. Keep going.

Raja Pundalik said...

Excellent post, once again! Looking forward to more of the same going forward...! Wish you could take up 'Paraj' immediately after this...

Alpana Verma said...

Shukriya Manoshi ji .