स्थाई-
जय जय दुर्गे माता भवानी
सब जगत को दुख हरणी
अंतरा-
पाप निवारणी, महिषासुर मर्दिनी
रा्मदास शरण गये भवानी दयानी शिवानी
राग दुर्गा के बारे में थोड़ी सी जानकारी-
ये राग, ठाठ बिलावल से उत्पन्न हुआ है और रात्रि के द्वितीय प्रहर में गाया-बजाया जाता है। इस राग में गंधार (ग) और निषाद (नि) का उपयोग नहीं होता है अर्थात ये स्वर वर्ज्य हैं। और बाक़ी सभी स्वर शुद्ध हैं। इस तरह इसकी जाति हुई औडव-औडव अर्थात आरोह में और अवरोह में पाँच स्वरों का प्रयोग। (परिभाषायें देखें)। वादी स्वर मध्यम (म) और संवादी स्वर षडज (सा) है।
आरोह- सा रे म रे प ध सां।
अवरोह - सां ध प ध म रे ध सा।
पकड़ - सा ध म प ध म रे ध़ सा।
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3 comments:
Hi Manoshi
Good one from Pt Mishra & Mishra. Thanks and keep the posts going.
Cheers
Milind
Wah wa
Kya baat hai
anand aa gaya
bahut barhiya..adbhut audio , maja aa gaya ...
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